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जातिगत रैलियाँ गलत क्यों?

देशभक्त भारत
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11-07-2013। ये वो दिन है, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी में होने वाली जातिगत (चुनावी) रैलियों पर रोक लगाने की संस्तुति की। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह कहा कि जातिगत रैलिया विद्वेष फैलाने हेतु की जाती है और यह संविधान के खिलाफ है, जो कि जाती के नाम पर होने वाले भेदभाव का विरोध करता है। यूपी में पिछले कई दिनों से ब्राह्मण रैलियों का आयोजन सपा औऱ बसपा द्वारा किया जा रहा था। और बसपा तो एक महीने के अन्दर 35 रैलियाँ कर चुकी थी। कांग्रेस भी इसकी तैयारी में थी पर कोर्ट के इस फैसले से उसकी तैयारी धरी की धरी रह गयी। यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह की रैलियाँ की गयी है। हमेशा दलित रैली, पिछड़ा रैली, अगड़ा रैली, फलाना जाति, धर्म रैलियाँ की जाती रही है औऱ उस जाति को अपना वोट बैंक बनाने के लिए कुछ चुनावी वायदे भी किये जाते है जिसे पूरा करना ना करना उस पार्टी पर निर्भर होता है। हमेशा से ही जातियों के नाम पर अपना वोट बैंक मजबूत किया जाता है। अब इस तरह चुनावी रैलियों के क्या महत्व है और ये क्यों किया जाता है इसका एक अलग एजेंडा है जिसके बारे में कभी विस्तार पूर्वक चर्चा की जायेगी।
जिस संविधान का हवाला देकर जातिगत रैलियों को बन्द करने की बात की जा रही है क्या वहीं संविधान जातिगत आरक्षण देकर जातिवाद को बढ़ावा नहीं देता। क्या संविधान में कही पर ये लिखा है कि जाति के नाम पर वजीफा देना जातिवाद को बढ़ावा देना है। क्या धर्म के नाम पर एडमिशऩ लेना गलत है संविधान में। यह बात भी दीगर है कि संविधान निर्माता ने ही खूब ढेर सारी जातिगत रैलिया की थी। भले ही उनके उत्थान के लिए की गयी हो ये रैलिया पर आज भी तो जातिगत विकास करने को ही ये रैलियाँ की जाती है तो इसमें गलत क्या है। समानता का अधिकार सिर्फ दलितों पर ही क्यों लागू हो। क्यों आखिर में ऐसे सरकारी स्कूल खोले जाते है जिसमें किसी खास जाति के लिए 90 प्रतिशत तक सीट आरक्षित रहती है। क्या देश का विकास में सबका विकास नहीं है। क्या ये सच नही कि आरक्षण कुछ जातियों के लिए था पर अपडेट के बाद इसमें हजारों जातियाँ जुड़ गयी। और अब भी जुड़ रही है। अब अगर जनरल कैटेगरी के लोग अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हो रहे है और उनकी योग्यता का हनन हो रहा है तब तो ये स्वाभाविक ही है वो किसी ऐसे इंसान को खोजेगे जो उनके लिए आवाज उठा सके और जब उन्हें सपा बसपा में एक उम्मीद की किरण दिखती है और लोग उनकी रैलियों में भर भर के जा रहे है तब इसमें गलत क्या है। आज बसपा कहती है कि वह ब्राह्मणों को आरक्षण देगी कैसे देगी। संविधान में है तो देगी ही। औऱ ब्राह्मण तो जायेगे ही उनकी रैली में। सपा कहती है कि वह एससी एसटी एक्ट वापस लेगी। कैसे लेगी वापस। क्योंकि संविधान में सुविधा है। तो जहाँ हमें मिलेगा हमें वही जायेगे। क्योंकि यहाँ योग्यता नहीं जाति जरूरी है तो लोग नौकरी कहाँ से पाये। ना वजीफा है ना लोन की सुविधाष लोन मिल भी गया तो एससी एसटी या अल्पसंख्यक की तरह लोन माफ नहीं होगा। तो क्या करें। कही से तिकड़म भिड़ायों अपने आदमी को जितायो। घूस में थोड़ा छूट पायों और बन जाये सरकारी नौकरी वाले। क्यों कुछ गलत कहा क्या। और यूपी में तो पहले भी रैलिया होती रही है तो आज क्यों किसी क्यों याद आया। इसलिए कि सब ब्राह्मणों की और ध्यान देने लगे। और इन रैलियों में तो सिर्फ विशेषाधिकार की ही बात होती है, मैंने तो भड़काऊँ भाषण नहीं सुने। आज अगर यूपी में सिर्फ मुस्लिमों की ही बात की जा रही है उनके इलाके में कॉलेज, उन्हे वजीफा की बात हो रही है तो क्या हिन्दु बीजेपी के खेमें में नहीं आयेगे क्योंकि वो एक हिन्दुवादी पार्टी है। अगर संविधान में ये कानून होता कि किसी खास जाति धर्म के इलाके में कॉलेज स्कुल खोलने गैरकानूनी है तो कोई ऐसा वादा ना करता और सभायें सिर्फ भारतवासियों की होती ना कि फला जाति धर्म की। इसलिए नेताओं को संविधान से जल्द कुछ नियमों पर ध्यान देना होगा ताकि जातिवाद मिट सके।
कैसे-
1. जातिगत आरक्षण बन्द करे
2. जातिगत स्कूल ना खोले
3. जातिगत वजीफा ना दे
इन तीन कार्यों से ही जातिवाद पूर्ण रूप से खत्म होगा।
वरना साथ खाना, पीना, मन्दिर जाना तो होगा। पर रोज घर में फला जाति को गाली देने का सिलसिला नहीं रूकेगा। नमस्कार।
अगर कुछ त्रुटि हो तो ठीक करें।
भारत का संविधान एक को गिराकर दूसरे को उठाओ वाले नीति पर काम करता है इसलिए आज तक कोई आगे नहीं बढ़ा। एक नमूना देखिए। एक बसपाई आकर कहता है कि आरक्षण ने ऐसा काम किया कि दलित अब सफाईकर्मी का काम नहीं करते ब्लकि ऊँचे जाति के लोग सफाई का काम करते है। और इस तरह देश का विकास हो रहा है। मैं बोलता हूँ ये कौन सा विकास की एक आगे बढ़ा तो दूसरे को पीछे कर दो। और ऐसा ही हो रहा है। मैं बोलता हूँ कि विकास ऐसा हो कि कोई भी सफाई कर्मी ना बने ब्लकि रोबोट ये काम करे। अगर हम एक एक करके जातियों का विकास करते रहे तो भारत का विकास कब होगा। । वरना फला जाति गीर गयी इसमें कौनसी बढ़ाई है। इससे तो यही पता चलता है कि देश का एक आदमी पीछे जा रहा है। तो इसमें क्या फायदा है। क्यों मित्रों सही है या नहीं। एक को उठायों दूसरे को गिराओ । ये तो द्वेष है।अगर मैं देश का प्रधानंमत्री बना तो मैं जातिगत आरक्षण, गौ हत्या औऱ शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दूँगा। धर्म विशेष को खुश करने वाली योजनाओं को बन्द करा दूँगा। सभी इंजीनियरिंग, मेडिकल एवं उच्च शिक्षा को स्वदेशी भाषा में करवा दूँगा। जय हिन्द जय भारत। अगर मैं देश का प्रधानंमत्री बना तो मैं जातिगत आरक्षण, गौ हत्या औऱ शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दूँगा।

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