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एक दिन मैं स्कूल में 11वीं के छात्रों को साइंस पढ़ा रहा था। मैं अपने छात्रों को संयोजकता का नियम समझाने की कोशिश कर रहा था। अचानक ही बगल की दसवीं की क्लास से शोर सुनाई दिया। शोर सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। और मैं तुरन्त दसवीं की क्लास में पहुँच गया। जैसा की पहले से तय था उस क्लास में कोई टीचर नहीं था। लेकिन दो छात्र महेश मिश्रा और रौनक आपस में जुबानी लड़ाई कर रहे थे। मेरे पहुँचते ही दोनों सहम गये और अपनी अपनी सीट पर बैठ गये। मैनें तुरन्त उस क्लास के मानीटर को तलब किया औऱ उससे झगड़े की जानकारी ली। उसने बताया कि रौनक कई दिनों से महेश को पंडित पंडित कहता रहता था। तो आज महेश ने भी रौनक को उसकी जाति चमार से पुकार दिया और इस बात पर रौनक भड़क गया और महेश से झगड़ा करने लगा। रौनक कह रहा था कि उसने आखिर जाति सूचक शब्द का प्रयोग क्यों किया।
मैने महेश से कहा- देखो, बेटा किसी को उसके जातिसूचक शब्द से नहीं पुकारना चाहिए। ऐसा संविधान में लिखा हुआ है।
महेश बोला- लेकिन सर क्या सिर्फ भारत में चमार एक ही जाति है क्या। मेरी जाति पंडित है। तो क्या उसने मुझे पंडित बोलकर मेरा अपमान नहीं किया। क्या सिर्फ दलितों को ही उसके जाति के नाम से नहीं पुकारा जा सकता है।
फिर मैंने कहा- देखो बेटा, चमार उसे कहते है जो कि चमड़े का काम करते है। अब वो ऐसा काम नहीं करता तो उसे चमार नहीं कहना चाहिए।
तब महेश ने कहा- लेकिन सर मैं कौन सा घर घर जाकर पत्रा बाँचता हूँ कि मुझे ये पंडित कहता है।
औऱ वैसे भी इन्हें अपनी जाति से इतनी चिढ़ क्यों है।
मैंने मामला सम्भालते हुए कहा- देखो बेटा चमार एक नीच जाति समझी जाती है। लोग इनके हाथ का छूआ पानी तक नहीं पीते इसलिए इसे बुरा लगा। चमार कहने से आदमी नीच समझा जाता है और पंडित कहने से उच्च का बोध होता है इसलिए ये लोग बुरा समझते है। इसलिए जातिसूचक वर्ड का प्रयोग ना करो।
महेश भी पूरी तैयारी के साथ आया था- सर अगर चमार इतनी ही बुरी जाति है इतनी ही गिरी जाति है तब ये लोग उस जाति का उपयोग क्यो करते है आखिर इसका पिता को नौकरी भी तो उसी चमार जाति के कारण मिली है। इसे स्कालरशिप भी तो इसके जाति की वजह से मिलती है फिर इसे चिढ़ क्यों है। पिछले दिनों मैंने विजय मंडल को भी मंडल कह के पुकारा तो वो गुस्सा हो गया। मैंने पूछा तो बोलता है कि जातिसूचक शब्द है मत बोलो। मैंने कहा अगर इतना ही जातिसूचक शब्द है तो नाम के आगे ही क्यों लगाते है। तो चुप हो गया । बाद मैं मुझे पता चला है वह उपनाम एससीएसटी जाति में आता है और इससे इसे स्कालरशीप मिलती है तभी वो यूज करता है। तो नाम से पुकारने में समस्या क्या है। और वैसे भी सर इनकी जाति प्रमाण पत्र में जाति का खुलेआम उल्लेख रहता है। तब ये क्यों नहीं चीखते। अगर जाति सूचक शब्द का यूज गलत है तब तो जाति प्रमाण पत्र बनाने वाले सारे अफसरों के खिलाफ केस कर उन्हें जेल में बन्द कर देना चाहिए।
पिछले दिनों इसने जो पाँलिटेक्निक का फार्म आया था उसमें भी खुलेआम चमार शब्द का उपयोग था। और उसे फार्म में लिखना था। तब तो इसने खुशी खुशी लिख दिया था। तब तो इसे ग्लानि नहीं हुई। और जब इसके बड़े भाई सुनिल का एडमिशऩ इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ तब उसे प्रवेश परीक्षा में पैसो औऱ नम्बरों में छूट किस वजह से मिली थी। इसके भाई की पूरी कॉलेज फीस माफ हो गयी। जबकि हमारे कॉलोनी के सोनू उपाध्याय को पूरी फीस भरनी पड़ती है जबकि सोनू के पिता की आय इसके पिता के आय से 5 गुना कम है। अब बताइये ये कैसा भेदभाव। एक औऱ बात सोनू के इंजिनियरिंग प्रवेश परीक्षा में नम्बर सुनिल से काफी अधिक थे फिर भी उसे प्राइवेट काँलेज मिला जबकि सुनिल के नाम मात्र के नम्बर थे फिर भी उसे सरकारी कॉलेज मिला । क्यों क्या यहाँ योग्यता का हनन नहीं हुआ। सोनू के पिता की आय कम है फिर भी सोनू को पूरी फीस भरनी पड़ती है क्यों इसलिए कि वो जाति से पंडित है । औऱ इसके पिता की तनख्वाह अधिक है फिर भी इसके भाई को फीस ही नहीं देनी पड़ती क्यों । ये कैसी गरीबी की परिभाषा है। जो बाबा साहेब ने तय की है।
बहुत से लोग कहते है कि मैं जाँति पाति में विश्वास नहीं करता। ये वो ही लोग है जो रोज सरकारी कार्यालयों में अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए फिरते रहते है और रोज धक्के खाते है। अब ये लोग झूठ क्यों कहते है पता नहीं। पर ये लोग नीची जाति के होते है इसलिए ऐसा कहते है।
जो लोग चमार जाति से है उनसे एक सवाल। वो चमार शब्द को जातिसूचक शब्द क्यों मानते है जबकि जाति प्रमाण मे इसका खुलेआम उल्लेख होता है। यहाँ तक की इसी शब्द की वजह से उन्हें नौकरियाँ और अन्य सुविधायें भी मिलती है।
कुछ लोग कहते है जातिवाद नहीं फैलाना चाहिए। संविधान में समानता का उल्लेख है। उन लोगो को पता ही नही कि संविधान में ही ऊँच नीच का मापदंड तय किया गया है और जातियों का खुलेआम उल्लेख है। तो हम जातिवाद क्यों ना करे।
अगर कोई ये कहे कि जातिवाद खत्म कर देना चाहिए क्योंकि यह समाज की माँग है तो मैं मान सकता हूँ पर कोई इसे खत्म करने के लिए संविधान का उदाहरण देगा तो मैं उसे दुनिया का सबसे बड़ा बेवकूफ समझूगा। क्योंकि संविधान खुद जातिवाद का सर्मथन करता है।
कभी-2 मैं क्राइम पेट्रोल देखता हूँ तो उसमे कहते है क्यों करते है ऊँची जाति के लोग भेदभाव , जब संविधान में सबको समानता का अधिकार है। मैं कहता हूँ कभी समानता के अधिकार के बजाय आरक्षण वाला पेज भी खोला कर। जिसमें खुलेआम समानता के अधिकार का मजाक उड़ाया गया है। तो कभी उसको भी दिखाया करो। जो समानता के अधिकार के नाम पर हो रहा है, उसको दिखाया करें। समानता के नाम पर जो सुविधा बाँटी जा रही है उसे दिखाया करें क्राइम पेट्रोल। जातिवाद के खिलाफ बोलने वाले ये कभी आरक्षण के खिलाफ बोलेगे या नहीं।
जब भी कहीं जातिवाद से सम्बधित घटना होती है तब बुद्धिजीवीयों द्वारा संविधान की दुहाई दी जाती है और कहा जाता है कि भारत में सभी जातियाँ समान है सभी धर्म समान है । इसलिए धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। पर सच्चाई तो यह है कि सबसे ज्यादा जातिगत भेदभाव संविधान में लिखे बातों औऱ कानूनों से होता है। जाति के नाम पर भेदभाव यह संविधान ही प्रदान करता है। आखिर क्यों हमारे देश में 3000 से भी अधिक जातियाँ आ गयी जबकि हिन्दू धर्म के अनुसार तो सिर्फ 4 जातियाँ है। क्यों। आज यहाँ देखिए वहाँ अल्पसंख्यकों, दलितो पिछडों के लिए हो रहा है। क्या ये कभी देश के लिए कुछ करेगा। क्रमशः
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