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आपका वोट अमुल्य है, इसे सस्ते में ना बेचे

देशभक्त भारत
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मित्रों करीब एक साल बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले है। आपका वोट अमूल्य है, इसका उपयोग सोच समझ कर करें। आप किस पार्टी को वोट देते है यह मेरी चर्चा का विषय नहीं है। मित्रों जब भी चुनाव आते है जब नेता वोट हथियाने के अलग अलग तरीके अपनाते है। उनमें से कुछ निम्न हैं-
1. जाति के नाम पर
2. धर्म के नाम पर
3. फलाने नेता के भाई बेटा बहू के नाम पर
4. आपके पुराने प्रत्याशी के नाम पर
मित्रों इन सभी विषयों पर विस्तार से चर्चा कर लेते है। परन्तु इसके पूर्व कुछ बाते आपसे जान लेते है।
1. आप कौन है- हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई या कोई अन्य या भारतीय?
2. आप अपने धर्म में किस जाति से सम्बन्ध रखते है ?
3. आप किसका विकास चाहते है- अपना, अपनी जाति का ,अपने धर्म का, अपने प्रान्त राज्य देश या विश्व का?
4. हिन्दु धर्म में एक बात की जाती है- सर्वें भवन्तु सुखिन,सर्वे सन्तु निरामया
सर्वें भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद दुख भाग भवेत।
क्या आप इस बात का पालन करना चाहते है?
5. आप किस तरह का विकास चाहते है- सड़क, बिजली, आर्थिक निर्भरता, सुऱक्षा, पानी आदि या बेरोजगारी भत्ता, रोजगार गारंटी योजना, कन्या विद्या योजना, जाति-धर्म के नाम पर मिलने वाला वजीफा, मुफ्त लैपटाप साइकिल योजना जैसी योजना?
6. क्या आप ऐसी सेक्युलर पार्टी चाहते है जो राज्य में दंगे करवायें पर सेक्युलर कहके निकल जाये या ऐसी साम्प्रादायिक पार्टी जो अपने चुस्त शासन के बल पर एक भी दंगे ना होने दे?
7. क्या आप ऐसे इंसान को वोट देगे जिसके पास कोई नजरिया ना हो बस वो किसी पुराने नेता का बेटा बेटी बहू हो और उस नेता को आपने पहले विधयाक या एमपी बनाया था इस कारण परिवारवाद को बढ़ावा देते हुए वोट देगे या उस इंसान को वोट देगे जिसके पास आपके जिले शहर राज्य देश को नये विकास की और ले जाने का नजरिया है। फैसला आपका है।

यह सारे सवाल मैंने आपसे इसलिए पूछे क्योंकि भारत में 80 प्रतिशत वोटरों को तो ये भी नहीं पता होता कि उनका नेता का बैकग्राउन्ड क्या है। सिर्फ पार्टी पता होता है, जाति औऱ धर्म पता होता है, फलाने का बेटा होता है बस इतना पता है औऱ हम सब वोट देने पहुँच जाते है। क्यों? आप अपने विधायक, सांसद से पूछिए कि वो आपके शहर के लिए ऐसा क्या कर सकता है जिससे वहाँ हमें सुऱक्षा का एहसास हो या हम अपने परिवार के साथ एक शाम गुजार सके?
क्या आप जिन योजनाओं को लागू करने की सोच रहे है उसके दूरगामी परिणाम क्या होगे। जिन योजनाओं को आप लागू करेगे क्या उसका ब्लू प्रिन्ट आपके पास है। उसके लिए धन की व्यवस्था आप कहाँ से करेगे। इन सब सवालों की लिस्ट बना ले। उनसे पूछे कि आपको इस शहर की संस्कृति भाषा आचार विचार समस्याओं के बारे में क्या पता है? आदि सवाल पूछे।
इस तरह हम दो तरह के चुनावी वादे मान सकते है-
• स्कूल, कालेज का निर्माण. बिजली, सड़क, स्वास्थय, रोजगार, सुरक्षा आदि के वादे
a) सबके लिए सड़क बिजली पानी स्कूल की व्यवस्था
b) किसी विशेष धर्म जाति के लिए विकास का वाद
• मुफ्त लैपटाप, साइकिल, अनाज, इंडक्शन कुकर, बेरोजगारी भत्ता, और जाति औऱ धर्म आधारित योजनाये य़था उस धर्म जाति को मुफ्त पैसे बाँटना, स्कालरशिप देना उसके लिए अलग से कानून बनाना जैसे कार्य।
पहले वाले कार्य किसी विशेष के लिए ना कर के सबके लिए किये जा सकते है। पर इसमें भी नेता जातिवाद औऱ धर्मवाद को जोड़ देते है जैसे दलित मुस्लिम इलाकों में सड़क निर्माण , बिजली का निर्माण दलित मुस्लिम इलाकों में स्कूल कॉलेज की स्थापना आदि। अब देखिए सड़क बिजली, कॉलेज स्कूल में तो सभी का हित जुड़ा हुआ है। फिर उसे किसी धर्म जाति से क्या जोड़ना। फिर भी हम सभी जातिगत विशेषता में इतने निपुण हो चुके है कि फलां पार्टी हमारे हित के बारे में सोच रही है है यह जानकर के वोट डाल आते है। भले ही हम अन्य कार्यों में जाति का भेदभाव ना मानते हो औऱ जाति पाँति को न मानने का दंभ भरते हो परन्तु चुनाव के एन टाइम हम जाति धर्म के नाम पर वोट डाल आते है।(आरक्षण के द्वारा भी जातिपाँति फैलायी जाती है यह किसी से छुपा नहीं। ) इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि फला प्रत्याशि हमारी जाति धर्म का है इसलिए यह हमारी मदद करेगा। भले ही इसकी पार्टी ने हमारे लिए कोई चुनावी वादा ना किया हो। और यहीं पर हमसे एक चूक हो जाती है। एक उदाहरण देता हूँ औऱ चूँकि में यूपी का हूँ इसलिए यूपी का उदाहरण बेस्ट है। पिछली बसपा सरकार ने एक योजना शुरू की अम्बेडकर ग्राम योजना। इस योजना के (चुनावी वादे में) अनुसार दलित बाहुल्य ग्रामों में साफ सफाई, सड़क बिजली, पानी आदि के कार्य किए जायेगे। सभी दलितों ने एकमत होकर बसपा को वोट दिया कि देखो ये तो सिर्फ हमारे भले की बात कर रहा है। परन्तु हुआ क्या। इसका प्रारुप बदलकर पिछड़े गाँवों के विकास में बदल दिया गया। अब गाँवों में विकास हुआ तो सब जाति धर्म का हुआ। सबको फायदा मिला। अब आप ये कहते होगे कि जब कार्य सबके लिए किया जा सकता है तो फिर जाति धर्म का नारा क्यों। वो इसलिए क्योंकि नेताओं को पता है कि जाति धर्म का उत्थान सबकी विशेषता है और जब सब इकट्टे हो जाते है तो एक वोट बैंक बनता है और विजय हासिल हो जाती है। जैसे दलित हो ठाकूर हो मुस्लिम हो अगर इनके वोट एकत्रित होते है तो सबको फायदा पहुँचाते है। इसलिए जाति का समीकरण बनाया जाता है। हम सभी जानते है यूपी में सपा ने कैसे मुस्लिम वोट को एकत्रित करके अपनी सरकार बनायी यह किसी से छुपा नहीं है। मुस्लिमों के लिए जो वादे किए गए उसमें से अधिकतर नीजि फायदे थे जिससे सिर्फ मुस्लिमों को ही फायदे पहुँचते। इसकी चर्चा हम दूसरे वाले चुनावी वादे मेंम करेगे। तो इस तरह से चुनावी वायदे किये जाते है और लोगो को बेवकूफ बनाया जाता है।
अब एक बात जो मैंने आपसे कही वो ये कि लोग अपने जाति धर्म वाले प्रत्याशी को देखकर वोट दे डालते है कि किसी भी परेशानी में होने पर ये हमारी सहायता करेगे। आपको ऐसा क्यों लगता है कि यह प्रत्याशी आपकी जाति का है तो मदद करेगा। अरे भाई उसे तो सिर्फ अपने विकास से मतलब है वह आपका इस्तेमाल करेगा और फिर आपको फेंक देगा। आपको अपने चुनावी रैली में ले जायेगा। आपसे तोड़फोड़ करवायेगा औऱ आप सोचेगे कि ओह ये मेरा गुंडई में साथ देगा। परन्तु एक बात समझ ले नेताओं की चुनावी रैली या भड़काऊँ कार्यों में आप जो सहयोग उससे जो सरकारी नुकसान होगा उसमें आपका ही नुकसान होगा। क्योंकि सरकारें अपने जेब से पैसा नहीं लाती है बल्कि वो आपके टैक्स के पैसों से ही ये नुकसान भरवाती है है और उसकी बराबरी के लिए आपसे अधिक टैक्स भरवातीहै। क्योंकि उसे कही ना कही से तो सरकारी खजाने को तो भरना ही है। (अब आपको समझ में आ गया होगा कि आपके बच्चे की स्कूल फीस एकाएक क्यों बढ़ गयी और सामान के दामों में एकाएक बढ़ोतरी क्यों हुयी)
अब हम आते है दूसरे चुनावी वादों की ओर ।यह काफी संक्षिप्त में है। इसके अन्तर्गत जैसे कि मैंने आपको बताया कि फ्री लैपटाप, साइकिल, चावल, इंडक्शऩ कुकर व जाति और धार्मिक आधार पर स्कूल फीस में छूट , स्कालरशीप, कर्जे की माफी आदि आते है। यूपी और कर्नाटक का उदाहरण लेते है। यूपी में जैसा कि आपको याद होगा कि कैसे सपा ने अपनी सरकार बनायी थी। मुस्लिम वोट के आधार पर । मुस्लिमों के लिए किए गए कुछ वायदे निम्न है-
i. मुस्लिम इलाकों में स्कूल कॉलेज की स्थापना
ii. मुस्लिम लड़कियों को हाईस्कूल और इंटर पास करने के बाद 30000 रू की सहायता प्राप्ति
iii. मुस्लिम बच्चों के लिए अलग से वजीफा( हाँलाकि ये योजना केन्द्र सरकार की है परन्तु यूपी सरकार ने पूरा करने में अपनी जान लगा दी।
iv. आतंक वाद के केस में बन्द मुस्लिमों को रिहा करना
v. कब्रिस्तानों के चाहरदीवारी का निर्माण करना
vi. मुस्लिम आरक्षण की माँग

अब इन सारे माँगो को पूरे करने में सपा की नानी याद आ रही है। और इन सबमें सबसे ज्यादा विवादित रहा है मुस्लिमों को रिहा करना। हाई कोर्ट का कहना है कि इन आंतकियों पर केन्द्र सरकार ने भी धाराएँ लगायी है इसलिए इन पर से केस वापस नहीं लिया जा सकता कई बार डाँट खाने के बाद भी राज्य सरकार का चालचलन नहीं सुधर रहा है।
अब यहाँ सवाल मुस्लिम समुदाय से है। आप क्यों उन आंतकियों को रिहा करवाना चाहते है क्यों आप कानून को चुनौती दे रहे है। अगर वो लड़के सच में निर्दोष है तो आप जल्द से जल्द न्याय के लिए स्पेशल कोर्ट की स्थापना की माँग करें। अगर आप एक मुस्लिम प्रेमी सरकार के आने पर अनर्गल माँग कर रहे है। तो जान ले कल को कोई हिन्दू प्रेमी सरकार आयी तो आपक क्या हाल होगा। ये आप स्वयं सोच ले। कल को आपके घर में भी कोई मारा जायेगा और अपराधी के ऊपर से केस वापस ले लिया जायेगा। तो आप क्या महूसस करोगे ये आप खुद सोच ले।
दूसरी तरफ मुफ्त में मिलने वाले सुविधाओं का है। आप क्या सोचते है क्या ये पैसा सरकार अपने जेब से दे रही है। नहीं जैसा कि मैंने बताया कि सारा पैसा हमारे औऱ आपके टैक्स से मिलने वाले पैसों का है। ये जो सपा सरकार साइकिल, भत्ता, लैपटॉप, वजीफा आदि बाँट रही है वो हमारे आपके पैसे से ही बाँट रही है। वो कहीं अलग से नहीं ला रही है। आप ये क्यों सोचते है जो सरकार वजीफा बाँटेगी वो आपके स्कूल में अच्छी पढ़ाई का संकल्प लेगी? जो सरकार लैपटाप बाँटेगी, वो बिजली देगी? जो सरकार साइकिल बाँटेगी, वो सरकार आपके लिए पक्की सड़क बनायेगी? जो आपको सिर्फ जाति धर्म के नाम पर उच्च शिक्षा के लिए पैसा बाँटेगी वो आपके लिए उच्च शिक्षण संस्थान खोलेगी? क्यों सोचते है आप ऐसा?
एक औऱ बुरी आदत है सरकारों में कर्ज माफ करने की। कर्नाटक की बात करते है। वहाँ कांग्रेस ने वादा किया कि चुनाव जीतने के बाद वह दलितों, किसानों और अल्पसंख्यकों की कर्ज माफ कर देगी। मैं यहाँ एक सवाल उठाता हूँ। जिन लोगो ने कर्ज लिए होगे उन्होने किसी ना किसी कार्य हेतु कर्ज लिये होगे। तो आखिर में ऐसी क्या वजह हुयी कि इतने सालों बाद भी वो मूल क्या सूद तक ना चुका सके क्य़ों ?आखिर ऐसी कौन सी नीति थी जिसकी वजह से वह इंसान कर्ज लौटाने में कामयाब ना हो सका। क्या सरकारों ने इसकी जाँच की ? नहीं बस कर्ज माफ कर दिय़े। ये पैसे क्या इन नेताओं के घर से आते है। ये हमारी मेहनत की कमाई है। और क्या भरोसा है कि वे दुबारा कर्ज नहीं लेगे। और फिर से कर्ज वापस नहीं कर पायेगे। और अगली सरकार इनके कर्ज माफ कर देगी। क्यों । ये सिलसिला हमेशा चलता रहेगा। और कोई भी सरकार इन्हें कर्ज लौटाने लायक नहीं बना पायेगी। और ना ही बनाना चाहती है क्योंकि ये हमेशा हमपर राज करना चाहते है। और इस कारण से हमेशा हमें बेवकूफ, गँवार बनाये रखना चाहती है ।इसलिए मित्रों अपना वोट सोच समझकर दे। और अन्त में एक कविता इन नेताओं के ऊपर-

चुनाव का दौर था,
मच रहा वादों का शोर था,
नेता गाँव-2 घूम रहे थे,
अलग-2 तरीके से वोट माँग रहे थे,
एक नेता जी बोले-
भाई साहब हमें ही वोट दे,
भले ही वोट के बदले नोट ले,
दूसरे नेता जी ने विरोध जताया,
सोते हुए मतदाताओं को जगाया,
बोले-भाईयों आपका वोट अमूल्य है,
इसे सिर्फ नोट के बदले ना बेचो,
हमें वोट दो,
और साथ में शराब, साड़ी और कम्बल भी ले लो,
एक और नेता जी चिल्लाए,
बोले- भाईयों हमे ही वोट दे,
क्योंकि हमनें आपके लिए नहर बनवाया है,
ये अलग बात है कि उसमें आज तक ,
कभी पानी का एक बूँद तक नहीं आया है,
एक गाँव वोला बोला-नेता जी,
आपने तो गरीबों के लिए आवास भी बनवाया है,
सच-2 बताओं, उसके छत का पैसा किसने खाया है?
एक नेता जी मंच पर आसीन थे,
देश की चिन्ताओं से गमगीन थे,
बोले- भाईयों, ये सरकार निकम्मी है,
क्योंकि भ्रष्टाचार इसकी अम्मी है,
हम आपकी हर समस्या हल कर डालेंगे,
आप हमें वोट दे,
हम ये सरकार बदल डालेंगे,
तभी एक छात्र पहुँचा मंच पर,
बोला- नेता जी, पहले हमारी ये गणित की समस्या हल कर डालो,
उसके बाद नहीं हमें मतलब ,
चाहे तुम सरकार के साथ-2 अपना बैंक बैलेंस भी बदल डालो।

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