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अथो ‘मनमोहन’ जिज्ञासा

देशभक्त भारत
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प्रश्नः1- कृपया निम्नलिखित पंद्याश का सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
पंद्याश- हजारों जवाबों से बेहतर है मेरी खामोशी, ना जाने कितने सवालों की इसने लाज रख ली।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंद्याश कांग्रेस के पाठ्यपुस्तक हमारे प्रधानमंत्री के अथो मनमोहन गाथा पाठ से ली गयी है।
प्रसंग- जब भारत वर्ष में भ्रष्ट्राचार चरम सीमा पर था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस बारे में जवाब माँगा गया। तब उन्होनें यह शायरा गायी थी।
अर्थ- मनमोहन जी कहते है- आप लोग भले ही मुझसे सवाल पूछे, पर मैं कोई जवाब न दूँगा। और इससे मेरे सवालों की लाज रखी जायेगी।
व्याखा विश्लेषण- इस पंद्याश में मनमोहन एक लाचार प्रधानमंत्री की तरह आते है। देश में भ्रष्ट्राचार, आतंकवाद, घुसपैठ आदि बढ़ रहे है। गरीबी, भूखमरी आदि अपने पाँव पसार रही है। बेरोजगारी महामारी की तरह बढ़ रही है। दूसरी तरफ पड़ोसी देश पाकिस्तान लगातार हमारी सीमा में गोलीबारी कर रहा है, हमारे सैनिको को मार रहा है। देश की जनता त्राहिमाम्-2 कर रही है। युवा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर आयी है।
अन्ना हजारे, रामदेव जैसे संतो पर सरकार लाठियाँ चलवा रही है। उन्हें जेल में ठूँस रही है । शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना दे रही है। गौ हत्या बढ़ रही है। शराबी झूम शराबी झूम कर रहे है।
और इसी दौरान जनता की प्रतिनिधी और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया जगत प्रधानमंत्री से जवाब माँगने पहुँची। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एकदम शायराना अंदाज में बेतकल्लुफी से कहा
“हजारों जवाबों से बेहतर है मेरी खामोशी,
ना जाने कितने सवालों की इसने लाज रख ली।”
निष्कर्ष- प्रधानमंत्री के इस सवाल पर खूब हो हल्ला मचा, परन्तु प्रधानमंत्री उसके बाद पुनः मौन अवस्था में चले गए। आजतक जनता उनसे इस शायरी कहने की वजह ढ़ूढ़ रही है।
पर जैसा कि तत्कालीन गृहमंत्री सुशील शिंदे ने कहा था।
“जनता की याद्दाश्त बहुत कमजोर है, वो हर घटना को भूल जाती है।
लगता है जनता भी इस घटना को भूल गयी है।”
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