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नक्सलवाद खतरा है देश के लिए

देशभक्त भारत
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भारत में नक्सलवाद की समस्या नासूर बनती जा रही है। गाहे बगाहे जनता पुलिस और नेता इन नक्सलियों के दुस्साहस का शिकार बनते जा रहे है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के सुकमा इलाके में हुए कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमले ने इनकी ताकत और उददंडता का नजारा करा ही दिया। अब कांग्रेस को लगने लगा कि यह नक्सलवाद लोकतंत्र पर खतरा है वरना कुछ दिनों पहले तक तो उन्हें ये नक्सली अपने ही देशवासी लग रहे थे और इस कारण से उन्होने इन नक्सलियो पर सेना का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था। हाँलाकि इस पूरे घटनाक्रम में सुऱक्षा के चूक के साथ-2 कांग्रेस के अन्दर के गुटबाजी की महक भी आ रही है। इस हमले में बाल बाल बचे एक कांग्रेसी विधायक पर ये इल्जाम लगाया गया कि उसने ऐन मौके पर यात्रा का रुट बदलवा दिया। पर उस कांग्रेसी विधायक ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले अजित जोगी के इशारे पर उसने रूट बदलवाया था। जबकि अजित जोगी ने इस बात से इनकार किया। हाँलाकि एनआईए ने अपने शुरूआती जाँच में यह संकेत दिया कि इस घटनाक्रम में कांग्रेसी नेताओं का हाथ हो सकता है क्योंकि हादसे के कुछ दिनों पहले ही चार बड़े कांग्रेसी नेता नक्सलियों के सम्पर्क में थे। वैसे ये कांग्रेस की पुरानी नीति रही है जब भी कभी उसे अपनी स्थिती कमजोर प्रतीत होती है वो तुरन्त सहानुभुति बटोरो अभियान में लग जाती है चाहे वो इंदिरा गाँधी की हत्या हो या लालबहादुर शास्त्री हो या संजय या राजीव गाँधी इनकी मौत एक ही वजह से हुयी- सुऱक्षा में चूक और लापरवाही। औऱ इस तरह से कांग्रेस अपने पक्ष में जनता को मोड़कर अपना चुनावी आधार तैयार कर लेती है। ये तो कांग्रेस की बात अब जरा मुख्य मुद्दे पर बात कर ली जाए। नक्सलवाद पर। क्या नक्सलवाद का खात्मा विकास से किया जा सकता है या इसके लिए विकास का सहारा लिया जाना चाहिए या दोनों यह मुद्दा आज हर गली कूँचे में गूँज रहा है सब लोग इस पर अपनी अलग अलग राय दे रहे है। पर मेरी क्या राय है यह जाने बिना आप फैसला कैसे कर सकते है। मैनें इस विषय पर काफी सोच विचार किया और मैंने ये पाया कि हम विकास(जनता का) और विनाश(नक्सलियों का) के रास्ते पर चल कर ही शान्ति का रास्ता पा सकते है। हमें एक हाथ में विकास की मशाल उठा कर दूसरे हाथ से नक्सलियों का सफाया करना चाहिए। हम जानते है कि नक्सलवाद आंदोलन बंगाल के एक छोटे से गाँव से जमीन की लड़ाई के लिए शुरू हुआ और आज भारत के 15 राज्यों में अपने पाँव पसार चुका है। भले ही यह लड़ाई अधिकारों के लिए शुरू हुयी थी पर अब यह लड़ाई ना रहकर चंदा उगाही का धंधा बन चुकी है। आदिवासियों, वंचितो दलितो के उत्थान के लिए शुरू हुयी यह लड़ाई उन्ही के विनाश का कारण बन चुकी है। नक्सलियों विकास नहीं चाहते ब्लकि यह खुद का शासन चाहते है। नक्सलियों को चीन और पाकिस्तान से सहायता मिलती है यह बात किसी से छुपी नही है। वरना जितने आदिवासियों के पास एक अनाज का दाना खरीदने का पैसा ना हो वो लाखों के हथियार कैसे खरीद सकते है। जाहिर है यह बाहरी मदद के बिना सम्भव नहीं। भोले भाले आदिवासियों और गरीबों को ये लगता है कि देशविरोधी संगठन उनका विकास करने को आये है। पर ये कभी उनसे ये सवाल नहीं पूछते कि आप स्कूल क्यों उड़ाते है जिनमें पढ़ कर बच्चों का भविष्य बनता है। वो हथियार और बम खरीदने के बजाय हमारे लिए अनाज, रहने को घर क्यों नहीं देते है। अब ये नक्सली तो अनपढ़ है औऱ भोले भाले भी ये उनसे ये सवाल नहीं पूछ पाते। परन्तु जो अपने आप को मानवाधिकारी मानते है और जो नक्सलियों की मौत पर आँसू बहाते है औऱ जो अपने आप को समाज सेवक कहते है वो तो उनसे ये सवाल पूछ सकते है। जाहिर है इन मानवाधिक्कारो का कोई ईमान नहीं होता है। ये भी उन देशद्रोही गुटों के साथी है बस। नक्सलियों और आंतकवादियों से लड़ाई में हर साल सैकड़ो जवान मारे जाते है पर इनके लिए किसी के आँसू नहीं बहते पर हाँ अगर इन नक्सिलयों को जरा भी खरोंच आ जाये तो इन मानवाधिक्कारों की छाती फट जाती है। आँसूओं की गंगा बहने लगती है। कहने लगते है इन नक्सिलयों के बीवी बच्चे थे परिवार था। तो कौन सा हमारे सैनिकों का परिवार, बीवी बच्चे नहीं होते। अरे ये नक्सली तो देशद्रोह का कार्य करते है पर हमारे सैनिक तो देश की सुऱक्षा में दिन रात लगे रहते है और जिन सैनिकों की ये मानवाधिक्कारी बुराई करते है उन्ही की वजह से ये मानवाधिक्कारी सुऱक्षित रहते है। क्योंकि जब सरहद पर गोलियाँ चलती है तब ये सैनिक उन्हें अपने सीने पर खा लेते है। जब सड़क पर गोलीयाँ चलती है तब पुलिस वाले उसे अपने सीने पर रोककर आगे नहीं बढ़ने देते। वरना ये गोली आपके घर के अन्दर घुस जाती और ये मानवाधिक्कारी मारे जाते। जब इन मानवाधिकारों को जान का खतरा होता है तब ये हमारे सैनिक ही उन्हें सुरक्षा प्रदान करते है। तब इन मानवाधिक्कारों को आंतकी और नक्सली क्यों नहीं याद आते है। वो आकर दे देते इन्हें सुऱक्षा। पहले काम तो इन मानवाधिक्कारों को हटाना है। बाद में कोई बात होगी।
पहले तो ये नक्सली विकास नहीं करते दूसरा अगर कहीं विकास होता है तो होने नहीं देते। सरकार को दोहरी रणनीति अपना कर इन नक्सलियों को खत्म करना होगा। वरना ऐसा ना हो कि आज बंदूक के दम पर उन्हें दबा दे पर असंतोष के कारण वो फिर से फन ना उठा ले।
इस अवसर पर एक मशहूर फिल्म का सीन याद आता है।
किस-2 को मारोगे ठाकूर साहब , मारे तो आपके भी आदमी जायेगे।

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