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लैपटाप त मिल गईल, चलाइब कइसे बिजली रानी त हइहे नइखी

देशभक्त भारत
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किस अधिकार से मुलायम और अखिलेश ने छापी अपनी फोटो लैपटाप पर
मित्रों 11 मार्च को अखिलेश सरकार ने लैपटाप बाँटकर अपनी महत्वाकांक्षी योजना पूरी तो कर ली पर एक बात कचोटती है। लैपटाँप के ऊपर, उसके बैग पर मुलायम और अखिलेश की फोटो है। जहाँ तक की लैपटाप में एक ही वॉलपेपर है औऱ वो उनकी फोटो है। मजे की बात ये है कि वॉलपेपर हटाने पर लैपटाप बन्द हो जायेगा। अब ये बात समझ नहीं आती कि जब इस योजना में पैसा सरकारी खजाने से दिया जा रहा है। तब वो अपना फोटो कैसे चिपका सकते है। यह पैसा हमारा और आपके जैसे भाई बहनों की खून पसीने की कमाई का है। दिन रात काम करके हम जो टैक्स जमा करते है ये वो पैसा है फिर ये उसे अपना पैसा कैसे बता सकते है। इस योजना पर कुल 3000 करोड़ का खर्च आया है।
दूसरी तरफ अखिलेश की कहते है कि इस योजना से काफी फायदा होगा। बच्चे तकनीकी रूप से दक्ष होगे ।मित्रों मैं एक बात पूछना होता हूँ। अरे जिस राज्य में औसतन 4 घण्टे बिजली आती है। जिस राज्य में 80 फीसदी लोगो की वार्षिक आय 36000 रू है। उस राज्य में लोग लैपटाँप कैसे चलाएगे। यह सोचने वाली बात है। और इस सरकार को उसी दिन ही आईना दिख गया जब उस दिन ही करीब 500 छात्रों ने लैपटाप बेचने की कोशिश की। क्योंकि वो लैपटाँप को बेचकर अपने लिए कुछ पैसे लेना चाहते थे। ताकि कॉपी किताबे खरीद सके या अपनी फीस भर सके। इस लैपटाप की बाजार कीमत 26000 रू है पर वो छात्र उसे 10000 में बेचने को तैयार हो गये। अभी तो ये शुरूआत थी। अगले दिन करीब 1000 छात्रों ने इसे बेचने की कोशिश की। पूछने पर एक छात्र ने बताया इसके कुछ फीचर खराब है इस कारण ये इसे बेचकर नया लैपटाँप लेगे। कुछ ने बताया कि इसका वॉलपेपर नहीं बदल सकते। कुछ के अनुसार यह सामान्य से अलग है इस कारण इसका उपयोग बेकार है।
सोचिए मित्रों ये नेता हमारे पैसो को साइकिल लैपटॉप इंडक्शन कुकर बेरोजगारी भत्ता कन्या विद्या धन जैसी चीजे बाँटती है औऱ हमारे पैसों को पानी के समान खर्च करती है। यूपी में ही 585 फैक्ट्ररियाँ बन्द है ऊपर से 6 लाख पद खाली है। बिजली की समस्या है। क्या ये पैसा इन चीजों में इनवेस्ट कर ये समाज को इस लायक नहीं बना सकती कि लोग इन पैसों को ले ही ना या लैपटॉप जैसी चीजे खुद खरीद सके। सोचिए। क्या इससे जनता को विकलांग नहीं बनाया जा रहा है। सोचिए। क्योंकि पैसा हमारा आपका है। अन्त में अखिलेश सरकार से-
गर बाँटना हो तो बाँटो कुछ किताबें, कुछ पैसे ताकि जमा कर सकूँ फीस
क्योंकि लालटेन की रोशनी में पढ़ सकते है किताबे.
पर लैपटाँप चला नहीं सकते।
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मित्रों किसी भी पार्टी को सत्ता में इसलिए नहीं लाया जाता कि वह लैपटॉप बाँटे पर बिजली ना दे, साइकिल तो दे पर चलाने को पक्की सड़क ना दे। बेरोजगारी भत्ता तो बाँटे, पर रोजगार ना दे। उच्च शिक्षा के लिए पैसे तो दे पर उच्च शिक्षण संस्थान ना दे।
मित्रों यूपी जैसे 20 करोड़ जनसंख्या वाले राज्य में जहाँ गरीबी अपने मुँह पसार चुकी हो। अशिक्षा का दानव मुँह पर कालिख पोत रहा हो। सड़के जहाँ पायरिया ग्रस्त दाँत की तरह हो। बिजली जहाँ हमेशा फेल होने का रिकार्ड बनाती हो। बेरोजगारी अपने साम्राज्य पसार रही हो। उस राज्य में सिर्फ पैसे, चेक साइकिल लैपटॉप जैसी वस्तुए बाँटकर सरकार क्या दिखाना चाहती है। मित्रों इन योजनाओं में कुल 30000 करोड़ रुपए का खर्च आया है।
औऱ बड़ी बात यह है कि करीब 10 फीसदी छात्र दूसरों राज्यों ही क्या दूसरे देशों से भी आते है नेपाल बांग्लादेश भूटान से भी। तो क्या इन विदेशियों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा। मतलब पैसा हमारा और लाभ ये उठाये। टंगड़ी तोड़ कर हाथ में ना दूँ। विगत वर्षों की तरह इस साल भी नकल की गंगा बहेगी यह बात तो दीगर है। कई ऐसे छात्र भी परीक्षा में बैठेगे जो की 10वीं और 12वीं की क्या ग्रेजुएशऩ की भी पढ़ाई पूरी कर चुके है। नकल माफिया पूरे महीने नकल की झंडा फहरायेगे। अब सवाल यही उठता है। आखिर क्या बात हुयी कि सपा सरकार के आते ही नकल इतना बढ़ जाता है तो उसका कारण ये योजनायें यथा लैपटाँप कन्याविद्याधन योजना बेरोजगारी भत्ता ,साइकिल बाँटो योजना आदि । इन योजनाओं पर हर साल 30000 करोड़ का खर्च आयेगा ये तो पक्का है। और इन योजनाओं का लाभ वो लोग लेगे जो इसके काबिल ही नहीं। हर बार ऐसा होता है। हर साल सपा सरकार के आते ही परिक्षार्थियों की संख्या बढ़ जाती है। और नकल भी। आपको याद होगा सन् 2002 से 2007 का समय । उस समय में सपा सरकार ने कन्या विद्या धन योजना नाम से एक ऐसी योजना निकली जिसमें इण्टर पास छात्राओं को 20000 रू दिये जाते थे। इस योजना को प्रभावी करते ही बहुत से लोगों ने पुनः अपने घर के बहु बेटियों का एडमिशऩ 12वीं में करवा दिया। जहाँ तक की इस योजना में भ्रष्टाचार भी शुरू हो गया। 5000 रु दो तब 20000 रू पायों। कई अयोग्य लोग भी इस योजना का लाभ उठाते देखे गये। या यूं कहे कि अयोग्य लोग ही इस योजना का लाभ उठाते देखे गये। अब नकल का सारा खेल शुरू होता है यहाँ से। अब कुछ लोग ऐसे भी है जो कि केवल डिग्री से ही मतलब रखते है ।तो इनके लिए नकल की व्यवस्था करनी होगी। और यहीं से शुरू हुआ नकल माफिया का उद्भव जो आज पूरे राज्य में अपना राज्य कर रहा है। बिना चेहरे बिना पहचान के।
ऐसे ही सरकारे हमारे पैसा उड़ाती रहेगी और हम कुछ मिलने की लालच में हम ये सब देखते रहेगे। ये सब ऐसे ही है जैसे एक चोर ने पूरे गाँव में चोरी की और फिर उसके बाद चोरी के पैसो से एक भोज कराया और सब गाँव वाले वहाँ गये भी औऱ उस चोर की भूरी भूरी प्रशंसा भी की कि देखो कितना दानी आदमी है । वे गाँव वाले फ्री में खाने को मिल रहा है यह सोचकर खुश है लेकिन उन्हें पता ही नही कि यह उनका ही कमाये पैसो से है और वह चोर अब महान हो गया।
मित्रों इसे रोको वरना यह तुम्हें पहले मुफ्त में खाने की आदत डालेगी औऱ बाद में सब सुविधा छीन लेगी।[

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